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लेखनी कहानी -16-Jan-2023 5) वो क्लास कि शरारतें ( स्कूल - कॉलेज के सुनहरे दिन )



शीर्षक = वो क्लास की शरारतें




एक बार फिर हाजिर हूँ, अपने स्कूल / कॉलेज के किस्सों को आपके साथ साँझा करने के लिए, अब जो भी कुछ हमने अपने स्कूल में शरारतें, मस्तियाँ की वो हमें बखूबी याद है, उन्हें भूल पाना नामुमकिन है, अब वो हमारे दिलो दिमाग़ पर एक पत्थर पर खींची लकीर की भांति नक्श हो चुकी है


उन्ही यादों में से कुछ यादें आप सब के समक्ष रखने जा रहा हूँ
वो स्कूल जिसमे हमने कक्षा 2 या कक्षा 3 से दाखिला लिया था कुछ भूल सा रहा हूँ, उस स्कूल का नाम पैराडाइस पब्लिक स्कूल था, वो स्कूल उस लाल बिल्डिंग वाले स्कूल से थोड़ा अलग था जैसा की मैंने पहले संस्मरण में बताया था


वो भी एक घर में ही बना हुआ था, जो की अभी आधा अधूरा ही बन पाया था, यानी की उसकी दीवारों पर कही प्लास्टर था तो कही टीन की चादर पड़ी हुयी थी, छोटे बच्चों की क्लासेज यानी की नर्सेरी, U. K. G, और पहली क्लास नीचे बनी हुयी थी जबकी उससे बाड़ी क्लासेज छत पर बनी हुयी थी


छत पर बैठने का एक अलग ही मजा था, बच्चों को अपने अपने घरों की छते भी नज़र आती थी, उस स्कूल के पीछे एक कब्रिस्तान था जहाँ हम बच्चें लंच टाइम में खेलने जाते थे, और ज़ब लंच टाइम की बेल बजती तो हम दौड़े दौड़े स्कूल की तरफ भाग आते थे, कभी कभार खेल में इतना मगन हो जाते थे, की घंटी की आवाज़ तक सुनाई नही पडती और ज़ब स्कूल की तरफ वापस आते तो सब की पिटाई लगती थी


उस स्कूल में लड़के लड़कियां एक साथ पढ़ते थे, लड़कियां आगे बैठती थी और लड़के पीछे, वो स्कूल कक्षा 8 तक था इसलिए वहाँ हमसे बड़े बच्चें भी पढ़ते थे, जिन्हे देख हम छोटे बच्चों को डर लगता था, और हम सब उनसे बात तक नही करते थे


एक बार की बात है, हम कक्षा 4 में थे, एक बच्चा जो हमारा दोस्त था उसे ना जाने कहा से एक लेंस मिल गया था, जिसकी सहायता से वो धूप में कागज जला देता था, वो भी बिना किसी माचिस की तिल्ली जलाये, उस समय हमारे छोटे से दिमाग़ में वो सब होता देख भिन्न भिन्न सवाल आये और आखिर कार सब बच्चों ने उसे जादू का नाम दे दिया, वो तो बाद में बड़ी कक्षा में आकर पता चला की वो कोई जादू नही बल्कि विज्ञान का चमत्कार था, जो उस समय हमें जादू सा लग रहा था


और भी ना जाने कितनी ही शरारतें हमने बचपन में की थी उस स्कूल में, एक बार तो कुछ नालायक बच्चों ने एक अजीब ही तरह की हरकत सीख ली थी, बच्चों के बसते नीचे से काट देने की ब्लेड की सहायता से


माजरा इस प्रकार था कि उस स्कूल में कुछ शरारती के साथ साथ बदमाश बच्चों ने दाखिला ले लिया था, जो कि गाली गलोच के साथ साथ कुछ ऐसी हरकतें भी करते थे जिनसे और बच्चों का काफ़ी नुकसान होता था, जिसमे से एक था बच्चों के बसते काट देना ब्लेड से


एक दो बच्चों के साथ हुआ था तो किसी ने कोई एक्शन नही लिया लेकिन ज़ब ये शरारत हद से बढ़ गयी, नये नये बसते ब्लेड से कटने लगे तब सब बच्चों के माता पिता एक साथ आये उसी में मेरे बड़े भाई भी शामिल थे, जो शिकायत लेकर पहुचे क्यूंकि मेरा बस्ता भी कट गया था,


उसके बाद प्रधानाचार्य जी ने थोड़ी सख्ती बर्ती उसके बाद वो मामला थोड़ा ठंडा हुआ, अन्यथा तो सारे बच्चें परेशान थे,

उस स्कूल से जुडी कुछ और आख़री यादों को लेकर आपके समक्ष हाजिर हूँगा, आख़री इसलिए क्यूंकि कक्षा 8 तक चलने वाला वो स्कूल उसे हमें छोड़ना पड़ा था, लेकिन क्यूँ उसका, ज़िक्र हम आगे के संस्मरण में करेंगे ज़ब तक के लिए अलविदा


स्कूल /कॉलेज के सुनहरे दिन 

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3 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:40 PM

Nice

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अदिति झा

26-Jan-2023 07:51 PM

Nice 👍🏼

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Rajeev kumar jha

23-Jan-2023 03:25 PM

शानदार

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